Gende ki kheti ki jankari

किसान भाई  आज हम गेंदे की खेती (Gende ki kheti) के बारे में जानेंगे।मैरीगोल्ड एक प्यारा फूल है जो हर किसी को खूबसूरती से भर देता है।मैरीगोल्ड को हिंदी में “गेंदा” भी कहा जाता है। यह फूल उत्तरी भारत में खूब खिलता है और इसे किसान आसानी से उगा सकते हैं। इसकी खेती से अच्छा मुनाफा होता है और यह उत्तम तरीके से बगीचों और खेतों को सजाने के काम आता है।इस फसल का उत्पादन सम्पूर्ण देश में होता है और इसकी मांग उच्च होती है, खासकर पूजा और त्योहारों में इसका उपयोग होता है इस लेख में, हम आपको मैरीगोल्ड की खेती के बारे में सरल जानकारी देंगे,

गेंदे एक बहुउद्देशीय फसल है जो सजावटी, चिकित्सा और फार्मास्यूटिकल उद्देश्यों के लिए प्रयोग की जाती है, हैं। खासकर, मैरीगोल्ड को 14 प्रजातियों के पौधों-परास्त नेमाटोड को दबाने की क्षमता के लिए अच्छे से जाना जाता है। अधिक जानकारी के लिए, टमाटर, भिंडी, बैंगन, सोयाबीन  को मैरीगोल्ड के साथ बोना, रोटेट या ढ़ाक करने रोगों   को  से आसानी से कम किया जा सकता है।

मैरीगोल्ड को विभिन्न फसलों में कीटों को भगाने के लिए डाक्टर फसल के रूप में उपयोग किया जाता है। इसे सीमा फसल  के रूप में उगाया जाता है जो कीटों को फसल के पास नहीं आने देता। यह बहुफसली तंत्र के रूप में कई फसलों के साथ मिलकर उगाया जाता है क्योंकि यह कई बीमारियों के खिलाफ लड़ सकता है और किसानों की उपज को कम लागत में प्रभावी ढंग से बढ़ावा देता है।

गेंदे की खेती के लिए जलवायु | gende ki kheti k liye jalvayu

गेंदे की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु विभिन्न क्षेत्रों में उगाई जा सकती है, लेकिन इसके लिए अधिकतम उत्पादकता के लिए निम्नलिखित जलवायु शर्तों का पालन किया जाता है:

  • उच्च तापमान: गेंदे की फसल के लिए उच्च तापमान आवश्यक होता है। यह 20-30 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान उचित माना जाता है।
  • सूर्य प्रकाश: गेंदे की फसल के लिए अधिकतम सूर्य प्रकाश की आवश्यकता होती है। इसके लिए सम्मान्य रूप से खुले स्थान या सूर्य के प्रतिबिंब के स्थान का चयन किया जाता है।
  • वर्षा: गेंदे की फसल के लिए मात्रात्मक वर्षा की आवश्यकता होती है, लेकिन भरपूर सिंचाई की सुविधा का होना भी महत्वपूर्ण है।
  • फूलों के लिए ठंडी और आरामदायक मौसम जरूरी होता है। गर्मी में पौधों को नुकसान होता है। ठंडी में पौधों को बचाने के लिए बर्फबारी से सावधान रहना चाहिए। एक प्रकार की पौधा ‘मैरीगोल्ड’ है, जो गरमी में भी अच्छे से बढ़ता है। इसे धूप में अच्छे सूखी मिट्टी में लगाना चाहिए, और गर्म जगहों में छाया देना उसके फूलों को बढ़ा सकता है।

गेंदे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी  | gende ki kheti k liye mitti

गेंदे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी लोमदार और अच्छी ड्रेनेज वाली होनी चाहिए। मिट्टी का पीएच ph  स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। मिट्टी उर्वर होनी चाहिए ताकि पौधों को अच्छा पोषण मिल सके। साथ ही, मिट्टी में कमी की दवाइयाँ होनी चाहिए ताकि खाद्य में संतुलन बना रहे। अच्छा ड्रेनेज वाली मिट्टी का चयन करना जरूरी है ताकि पानी जमा न हो और पौधों को पर्याप्त ऑक्सीजन उपलब्ध हो सके। इसके अलावा, मिट्टी में मौंगी या कचरे का उपयोग करके मिट्टी की फर्शी में मिट्टी को हेतुमुक्त बनाए रखना भी आवश्यक है। यह सुनिश्चित करेगा कि गेंदे की फसल का उत्पादन उच्च हो और पौधे स्वस्थ रहें।

गेंदे की फसल के लिए  फसल तंत्र | Gende ki kheti ki jankari

गेंदे की फसल के लिए कुछ प्रमुख फसली तंत्र हैं जो किसान अपना सकते हैं। ये हैं:

  • एकाधिक फसली तंत्र : गेंदे की फसल को अन्य फसलों के साथ उगाने की तकनीक है, जैसे कि मक्का, तिल, या मसूर। इससे मिट्टी की खाद्यता का संतुलन बना रहता है और फसल के अनुभव को बढ़ावा मिलता है।
  • पूर्वावलोकन फसली तंत्र : इसमें एक फसल के बाद एक और फसल उगाई जाती है, जैसे कि गेंदे की फसल के बाद सोयाबीन या मक्का। इससे खेत का प्रयोजन बढ़ाता है और फसल का उत्पादन भी बढ़ जाता है।
  • एकल फसली तंत्र : इसमें केवल गेंदे की फसल ही उगाई जाती है। यह सबसे सामान्य तंत्र है और इसमें फसल की देखभाल में आसानी होती है।
  • इन फसली तंत्रों का चयन किसान के अनुसार भिन्न हो सकता है, लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि फसली तंत्र के चयन से खेत की उपयुक्तता, फसल का उत्पादन, और खेत की संरक्षा में सुधार हो।

गेंदे की खेती के लिए कुछ मुख्य चरण होते हैं:

  • बीज का चयन: प्राथमिक चरण है उचित बीज का चयन। अच्छे गुणवत्ता वाले बीज का चयन करें जो उच्च उत्पादकता और प्रतिरोधक्षमता प्रदान करे।
  • बुआई: मार्च से अप्रैल के महीने में बुआई की जाती है। बुआई के लिए उचित फसल व्यवस्था करें।
  • सिंचाई और खाद्य: पौधों को नियमित रूप से पानी और खाद्य प्रदान करें। मिट्टी में कमी की दवाइयां या खाने की मिट्टी का उपयोग करें।
  • रोग और कीट प्रबंधन: पौधों को रोग और कीटों से बचाने के लिए नियमित रूप से जांच करें और उपयुक्त कीटनाशकों का उपयोग करें।
  • फसल की देखभाल: समय पर फूलों को काटें और साफ-सफाई का ध्यान रखें। अच्छे प्रकार के फसल बचाव के लिए प्रणाली डालें।

गेंदे की  प्रजाति  | gende ki variety

गेंदे की कई प्रमुख species हैं जो विभिन्न आवश्यकताओं और उपयोगों के अनुसार चयन की जा सकती हैं। कुछ प्रमुख गेंदे की  प्रजाति निम्नलिखित हैं:

  • एफ्रिकन मैरीगोल्ड (African Marigold): यह प्रजाति  उच्चतम और मोटे फूलों के लिए प्रसिद्ध है और आमतौर पर आवासीय और व्यापारिक उद्देश्यों के लिए उगाई जाती है।
  • फ्रेंच मैरीगोल्ड (French Marigold): यह प्रजाति छोटे, छाले दार फूलों के लिए प्रसिद्ध है और आमतौर पर रोपण के लिए उपयोग की जाती है। फ्रेंच वनीला, डुरांग, बोनांजा ,लिटिल हीरो ,सफार, डिस्को
  • ऑगस्टा मैरीगोल्ड (Tagetes erecta ‘African Queen’): यह species ऊँचे संख्या में पौधे और बड़े और भारी फूलों के लिए प्रसिद्ध है।  example अफ्रीकन क्वीन, क्रैकरजैक, जायंट येलो, इंका II, मार्वेल, गोल्ड कॉइन।
  • डेविड्रे मैरीगोल्ड (Tagetes patula ‘Nana’): यह छोटे पौधे और छोटे फूलों के लिए लोकप्रिय है, जो आमतौर पर बागवानी के लिए उपयोग किया जाता है।

भारत में विभिन्न राज्यों में गेंदे की विशेष variety की खेती की जाती है। यहाँ कुछ भारतीय राज्यों के अनुसार गेंदे की कुछ प्रमुख variety का उल्लेख है:

  1. महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में ‘सेन्जी’ और ‘मंजरी’ जैसी variety प्रमुख हैं जो आमतौर पर पौधे की ऊँचाई, फूलों की संख्या और फूलों का आकार देखते हुए चुनी जाती हैं।
  2. उत्तर प्रदेश: यहाँ पर ‘संताई’ और ‘पान्सारी’ जैसी variety प्रमुख हैं जो अच्छे उत्पादन और विशेष फूलों के लिए लोकप्रिय हैं।
  3. मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश में ‘स्वर्णा’ और ‘रंगोली’ जैसी  उच्च उत्पादकता और रंगबिरंगे फूलों के लिए लोकप्रिय हैं।
  4. पंजाब: यहाँ पर ‘गेंदा बाबा’ और ‘गोल्डन’  प्रमुख हैं जो उच्च उत्पादकता और विशेषता के लिए लोकप्रिय हैं।
  5. गुजरात: गुजरात में ‘स्वर्णिम’ और ‘पूजा’ उच्च उत्पादकता और आकर्षक फूलों के लिए उपयुक्त हैं।

इन variety को विभिन्न राज्यों में विशेष उत्पादकता और आवश्यकताओं के आधार पर चुना जाता है।

गेंदे की खेती के लिए भूमि की तैयारी | bhoomi ki tyari

  1. गेंदे की खेती के लिए भूमि की तैयारी एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
  2. सबसे पहले, खेत को साफ किया जाता है और किसी भी  पौधों को हटा दिया जाता है।
  3. खेत को अच्छे से खोदने के बाद, खेत की बुराई की जाती है ताकि खेत में कीटों और विषाणुओं का संक्रमण न हो।
  4. अंत में, खेत में गेंदों के बीज बो दिए जाते हैं।
  5. इस प्रक्रिया के माध्यम से, भूमि को गेंदे की उच्च उत्पादकता और सफलता के लिए तैयार किया जाता है। 
राज्यगेंदे के बीज बोने का समय
उत्तर प्रदेशफरवरी के अंत से मार्च के पहले सप्ताह
बिहारफरवरी के अंत से मार्च के पहले सप्ताह
महाराष्ट्रअक्टूबर के अंत से नवंबर
गुजरातअक्टूबर के अंत से नवंबर
राजस्थानअक्टूबर के अंत से नवंबर
मध्य प्रदेशअक्टूबर के अंत से नवंबर

गेंदे की खेती के लिए बीज मात्रा | Gende ki kheti ke liye beej

यहाँ भारत के विभिन्न राज्यों के लिए गेंदे की खेती के लिए बीजों की मात्रा है:

राज्यबीज की मात्रा (प्रति हेक्टेयर)
उत्तर प्रदेश500-600 ग्राम
बिहार500-600 ग्राम
महाराष्ट्र400-500 ग्राम
गुजरात400-500 ग्राम
राजस्थान400-500 ग्राम
मध्य प्रदेश400-500 ग्राम

ये बीज की मात्राएँ उम्मीदवार हैं और मिट्टी की उर्वरता, रोपण विधि, और उगाए जाने वाले गेंदे के विविधता जैसे कारकों पर निर्भर कर सकती हैं।

बीजों का उपचार | seed treatment

गेंदे के बीजों का उपचार करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं जो निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • बीजों का ट्रीटमेंट : विशेष धातुओं और पोषक तत्वों के साथ सीड ट्रीटमेंट करना, जो बीमारियों और कीटों के खिलाफ गेंदे के  मदद कर सकता है।
  • बीजों का सोखना : गेंदे के बीजों को पानी में एक दिन के लिए भिगो दें। यह बीजों की growth को बढ़ाने में मदद कर सकता है।
  • बीजों का कोटिंग : गेंदे के बीजों को कोटिंग के लिए विभिन्न तत्वों के साथ मिला सकते हैं, जैसे कि पेट्रोलियम जेली, कैल्सियम नाइट्रेट, या गोबर ताजा या खुराक।
  •  फंगिसाइड और कीटनाशक  का उपयोग (Use of Fungicides and Pesticides): गेंदे के बीजों को फंगल और कीटों से बचाने के लिए उपयुक्त फंगिसाइड और कीटनाशक का उपयोग किया जा सकता है।

ये उपाय गेंदे के बीजों के स्वास्थ्य और उत्पादकता को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। उन्हें ध्यानपूर्वक और नियमित रूप से लागू किया जाना चाहिए।

गेंदे की फसल में लगने वाले कीट और रोग | Gende ki fasal me lagne wale keet aur rog

गेंदे के पौधों को कुछ सामान्य कीट और रोगों का सामना हो सकता है, जो निम्नलिखित हैं:

लाल सूज वाली मक्खी (Aphids):

ये छोटे सप-चूसने वाले कीट होते हैं जो पौधों के पत्तों पर समूह बनाते हैं। इनकी संख्या बढ़ने से पत्तियाँ मुड़ जाती हैं और डिस्टोर्ट हो जाती हैं। इनके संवेदनशीलता से आमीद पौधों की ग्रोथ पर असर पड़ता है।

मकड़ी मक्खी (Spider Mites):

ये छोटे कीट होते हैं जो पत्तियों के नीचे से रस चूसते हैं। इससे पत्तियों पर स्टिप्प्लिंग (सफेद धारों की गणना) और पीलापन दिखाई देता है। भारी संक्रमण में, वेबिंग और फूलने की समस्या हो सकती है।

गुंडा  थ्रिप्स (Thrips):

ये छोटे, छिड़चिड़े कीट होते हैं जो पत्तियों पर चबाने और सूखने का कारण बनते हैं। उनकी संख्या बढ़ने से पौधों की ग्रोथ में कमी हो सकती है।

इन कीटों के साथ-साथ, गेंदे को कुछ रोगों का सामना भी हो सकता है, जैसे:

जड़ बुराई (Root Rot):

अधिक पानी और पूर्णतः ड्रेन नहीं होने के कारण पौधों के रूट में रोट की समस्या हो सकती है। इससे पौधे की स्थिति में गिरावट और पत्तियों की कमज़ोरी आती है।

कवक संक्रमण (Fungal Infections):

फंगल इन्फेक्शनें गेंदे के पत्तों और फूलों पर दाग और दाने बना सकती हैं, जिनसे पौधे की सुंदरता पर असर पड़ता है।

इन पेस्ट्स और डिजीज़ के खिलाफ, समय-समय पर पेस्टिसाइड और फंगिसाइड का उपयोग करके, संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है। विशेषज्ञ की सलाह प्राप्त करना भी उपयुक्त हो सकता है।

कीटों और रोगों का नियंत्रण | rog or keet niyantran

गेंदे में कीटों और रोगों का नियंत्रण प्रबंधन करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय हैं, जो निम्नलिखित हैं:

  • समय पर  सतर्कता :  गेंदे के पौधों को नियमित रूप से जांचा जाना चाहिए, ताकि कोई अनुयायी कीट या रोगों की पहचान की जा सके।
  • साफ सफाई : खेतों को साफ और सुरक्षित रखने के लिए नियमित रूप से साफ़-सफाई की जानी चाहिए, और अवशेष या मृत पौधों को निकाल दिया जाना चाहिए।
  • प्राकृतिक नियंत्रण : प्राकृतिक रूप से कीटों और रोगों का नियंत्रण करने के लिए प्राकृतिक दुश्मनों का उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि लेडीबग्स, प्रेडेटरियल इंसेक्ट्स, और नेमाटोड्स।
  • फंगिसाइड और कीटनाशक का उपयोग: यदि उपाय निष्फल होते हैं, तो पेस्टिसाइड्स और फंगिसाइड्स का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इसका प्रयोग सतर्कता के साथ करना चाहिए।
  • संयुक्त रोग प्रबंधन :विभिन्न तकनीकों का एक संयुक्त उपयोग करके गेंदे के कीटों और रोगों का प्रबंधन किया जा सकता है, जैसे कि प्राकृतिक नियंत्रण, साइल कवर

गेंदे की कटाई | gende ki katai

गेंदे की कटाई किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो ध्यान, समय, और सही तकनीक की आवश्यकता होती है। गेंदे के फूलों की सही समय पर कटाई से पूरे मेहनत और उत्पादकता का निर्माण होता है। कटाई के समय पर फूलों का उचित चयन करना और ध्यान देना जरूरी होता है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि पूरे फूल पूरी तरह विकसित हो जाएं और उनकी रंगत, आकार, और गुणवत्ता सही हो। इसके अलावा, सही तकनीक का उपयोग करके गेंदे की कटाई करने से उत्पादकता में वृद्धि होती है और किसानों को अधिक मुनाफा मिलता है।

गेंदे की कटाई का समय और तकनीक निम्नलिखित होती है:

कटाई का समय:

गेंदे की कटाई का सही समय मार्च से लेकर मई के मध्य तक होता है, जब फूल पूरी तरह खिल गए होते हैं। इस समय पर फूलों की कटाई की जाती है ताकि उनमें से अधिक से अधिक अर्थपूर्ण मात्रा में तत्परता निकल सके।

कटाई की तकनीक:

गेंदे की कटाई के लिए एक तीक्ष्ण और स्वच्छ छुरा या ब्लेड का उपयोग किया जाता है। पौधों के सभी फूलों को बिना किसी नुकसान के हटाया जाता है, और इन्हें संशोधित किया जाता है ताकि वे अच्छी तरह से पैक किए जा सकें। फूलों की कटाई के बाद, उन्हें शीर्ष पर एकट्टा किया जाता है और उनके पाँव काट दिए जाते हैं,ताकि वे एक साथ एकत्रित हो सकें।

 गेंदे की उपज | gende ki upaj

गेंदे (Marigold) फूल की उपज की मात्रा विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि बुवाई की तारीख, मौसम की परिस्थितियाँ, उपयुक्त खाद, पानी, और रख-रखाव की देखभाल।

मेरीगोल्ड फूलों की उपज को आमतौर पर प्रति एकड़ के लिए मापा जाता है। यह उपज अलग-अलग क्षेत्रों और वातावरण में भिन्न हो सकती है। एक सामान्य अनुमान के रूप में, मेरीगोल्ड की उपज प्रति एकड़ आमतौर पर कुछ सैकड़ किलोग्राम से लेकर कुछ टन तक हो सकती है।

उपज की संख्या को बढ़ाने के लिए, खेतीकर अच्छी बुवाई प्रणाली, उचित खाद, पानी प्रबंधन, बीमारियों और कीटों का प्रबंधन, और समय-समय पर देखभाल करते हैं। उचित प्रबंधन के साथ, मेरीगोल्ड की उपज को बढ़ाया जा सकता है और यह एक सफल फसल बना सकती है।

गेंदे का भंडारण | gende ka bhandaran

Gende  फूलों का भंडारण उन्हें ताजगी और रंगता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होता है। यहाँ कुछ तरीके हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है:

  • ठंडे पानी में रखना: फूलों को ठंडे पानी में रखने से उनकी ताजगी बनी रहती है। एक बड़े पात्र में पानी डालें और फूलों को उसमें रखें।
  •   ताजगी की रक्षा:  मेरीगोल्ड को ताजगी के लिए ठंडे और धूप में रखा जाता है। इसे पहले से तैयार किए गए फूलों के साथ रखें ताकि वहें समान रंगता और ताजगी बनी रहे।
  • सूखा भंडारण: अगर आपको फूलों को बहुत दिनों तक संचित करना है, तो आप उन्हें सूखा भंडारण के लिए सिलिका गेल या अन्य उपयुक्त सूखा करने के उपकरणों के साथ भंडारित कर सकते हैं।
  • ठंडे स्थान पर रखें: यह ध्यान दें कि फूलों को गर्मी से बचाने के लिए उन्हें ठंडे स्थान पर ही रखा जाए। फूलों को सीधे सूरज की रोशनी में न रखें।
  • नमी की संरक्षण: फूलों की नमी की संरक्षण के लिए उन्हें नमी वाले मौसम में न रखें और उन्हें बिना कागज के पेटी आदि में रखें ताकि वह फूल जाने पर भी ताजगी बनी रहे।

गेंदे की खेती में लागत और लाभ | Gende ki kheti me lagat aur munafa

यदि हम मेरीगोल्ड फसल की लागत और लाभ की गणना करें, तो हमें निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखना होगा:

  1. बीज और बुआई की लागत:मेरीगोल्ड के बीज का मूल्य 5 रुपये प्रति ग्राम होता है और बीज बुआई की मात्रा प्रति एकड़ के लिए लगभग 250 ग्राम होती है। इसका मतलब बीज की खरीद की लागत लगभग 1250 रुपये प्रति एकड़ होगी।
  2. खाद और पोषक तत्वों की लागत: खाद की लागत लगभग 2000 रुपये प्रति एकड़ होती है।
  3. पानी की लागत: पानी की लागत किसी निश्चित क्षेत्र के अनुसार भिन्न हो सकती है, लेकिन सामान्यतः इसकी लागत लगभग 1000 रुपये प्रति एकड़ होती है।
  4. देखभाल और नियंत्रण की लागत: इसकी अनुमानित लागत 2000 रुपये प्रति एकड़ हो सकती है।
  5. इसके अलावा, आवश्यकतानुसार, अन्य लागत जैसे कि प्रवाहन, बाजार में बिक्री की लागत, और उत्पादन क्षमता की गणना की जा सकती है।

Example :

एक उदाहरण के रूप में, यदि हम मान लें कि मेरीगोल्ड फसल की उपज 1000 किलोग्राम प्रति एकड़ है और उसकी बिक्री कीमत 20 रुपये प्रति किलोग्राम है, तो कुल लाभ की गणना इस प्रकार की जा सकती है:

लागत की गणना:

  • बीज और बुआई: 1250 रुपये
  • खाद: 2000 रुपये
  • पानी: 1000 रुपये
  • देखभाल और नियंत्रण: 2000 रुपये कुल लागत: 6250 रुपये प्रति एकड़
  • लाभ की गणना:
  • उपज: 1000 किलोग्राम
  • बिक्री कीमत: 20 रुपये प्रति किलोग्राम
  • कुल आय: 20000 रुपये प्रति एकड़

कुल लाभ: कुल आय – कुल लागत कुल लाभ: (20000 – 6250) रुपये प्रति एकड़ = 13750 रुपये प्रति एकड़

यह गणना केवल एक उदाहरण है

By रिशिका कपूर

मैं रिशिका कपूर हूं, BSc कृषि में अध्ययनरत हूं। मुझे अपने कृषि अध्ययन से नई चीजों का अध्ययन करना और समझना बहुत पसंद है। मैंने हमेशा से नए ज्ञान को प्राप्त करने के लिए एक उत्साही रूप से पढ़ाई की है और इसी के साथ-साथ विशेष रूप से कृषि के क्षेत्र में अपनी रुचि और क्षमताओं को विकसित किया है। मैं नए विचारों और तकनीकों को अपनाने के लिए उत्सुक रहती हूं, जो मुझे एक बेहतर परिणाम तक पहुंचाते हैं। कृषि क्षेत्र में तकनीकी प्रगति के माध्यम से समाज के लिए उपयोगी और समृद्धिशील उत्पादों की उत्पत्ति में मेरा योगदान देना मेरा सपना है। इसीलिए, मैं इस क्षेत्र में अपने अध्ययन और प्रयासों के माध्यम से समाज की सेवा करना पसंद है।